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इस्लाम ने ही पेश की महाद्वीपों के एक होने की थ्योरी

Written By zeashan haider zaidi on बुधवार, 16 मार्च 2011 | बुधवार, मार्च 16, 2011


अलफ्रेड वेगनर एक जर्मन साइंसदां था जिसने 1915 में पहली बार दुनिया के सामने एक थ्योरी पेश की कि सभी महाद्वीप (Continents) वक्त के साथ अपनी जगह से खिसक रहे हैं। और करोड़ों साल पहले ये सब महाद्वीप एक दूसरे से मिले हुए एक ही जगह पर मौजूद थे। और यह सुपरमहाद्वीप चारों तरफ से महासमुन्द्र में घिरा हुआ था। यह नतीजा वेगनर ने महाद्वीपों के नक्शों की स्टडी करके निकाला था। उसने कहा कि अलग अलग महाद्वीप के किनारे आपस में जोड़ने पर इस तरह फिट हो जाते हैं जैसे किसी ने खींच कर उन्हें अलग कर दिया हो। इसलिए यह मुमकिन है कि करोड़ों साल पहले वे एक दूसरे से मिले हुए हों और बाद में खिसक कर अलग हो गये हों। उसकी यह थ्योरी दुनिया के लिये नयी थी और ज्यादातर साइंसदानों ने उसकी इस बात को कुबूल नहीं किया लेकिन जब 1950 में नयी तकनीकों के ज़रिये डाटा एनेलिसिस की गयी तो उसकी बात सच साबित हुई। इस मिले हुए सुपरमहाद्वीप को नाम दिया गया पैंगिया Pangaea । बाद में ये भी अंदाज़ा लगाया गया कि पैंगिया भी कुछ पहले के महाद्वीपों के आपस में मिलने से बना था। इनके नाम गोंडवाना व यूरेमेरिका दिये गये। इस तरह पुराने महाद्वीपों से नये का बनना व बिगड़ना साइक्लिक प्रोसेस है। 

लेकिन जो सबसे खास बात महाद्वीपों के खिसकने में मिलती है वह ये कि ज़मीन की उम्र का अंदाज़ा लगभग 4-5 बिलियन वर्ष लगाया गया है। ज़मीन की ऊपरी पपड़ी जिसपर जानदार रहते हैं और जिसके ऊपर समुन्द्र तथा खुश्क जगहें मौजूद हैं ये पूरी पपड़ी प्लेट्‌स की शक्ल में है। अलग अलग प्लेट्‌स लगातार खिसक रही हैं। इनके खिसकने की वजह से ही महाद्वीप खिसक रहे हैं। और जब ये महाद्वीप एक में मिले हुए थे उस वक्त उस पूरी खुश्क ज़मीन का मरकज़ वही जगह थी जहां आज  मक्का मुकर्रमा में मौजूद काबा शरीफ है।  

ऐसे में कुछ बहुत पुरानी हदीसें नज़र में फिर जाती हैं जो इस हकीकत को बयान करती हुई मालूम होती हैं जिनकी तरफ बीसवीं सदी से पहले की सांइस अँधेरे में थी। 
शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एलालुश्शाराए में दर्ज हदीस के मुताबिक हज़रत इमाम हसन बिन अली बिन अबी तालिब अलैहिस्सलाम से रवायत है कि एक मर्तबा चन्द यहूदी रसूल अल्लाह (स.) की खिदमत में आये और आपने मुख्तलिफ बातें पूछीं। उनमें से एक बात ये थी कि काबे का नाम काबा क्यों रखा गया? आनहज़रत (स.) ने फरमाया इसलिए कि ये दुनिया का विसत या मरकज़ (केन्द्र) है।

इसी किताब में दर्ज एक और हदीस के मुताबिक इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने मख्लूकात से पहले काबे को खल्क किया। इसके बाद ज़मीन को खल्क किया और काबे के नीचे से ज़मीन बिछायी।

उसूले काफी के बाब 124 हदीस 17 में इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम से रवायत है कि रसूल अल्लाह (स.) ने फरमाया मैं और बारह इमाम मेरी औलाद से और तुम ऐ अली ये सब इस ज़मीन के लिये मेखें और पहाड़ हैं ताकि ज़मीन अपने साकिनों के साथ हिले डुले नहीं। जब बारहवां मेरी औलाद से ख़त्म हो जायेगा तो ज़मीन मय अपने साकिनों के बैठ जायेगी और फिर उनको मोहलत न मिलेगी। 

ये हदीसें ऐसे हैरतअंगेज़ इन्किशाफ कर रही हैं जिनकी हकीकत मौजूदा साइंस से ही समझ में आती है। काबा हर तरह से दुनिया का मरकज़ है। करोड़ों साल पहले के सुपर महाद्वीप पैंगिया के नक्शे में खास बात जो नज़र आती है वह ये कि मक्का यानि कि काबा उसके केन्द्र में नज़र आता है। साथ ही साइंसदानों ने अंदाज़ा लगाया है कि लगभग दो सौ बिलियन सालों के बाद सारे महाद्वीप एक बार फिर मिलकर एक हो जायेंगे। उसका उन्होंने एक अनुमानित नक्शा भी तैयार किया है। और हैरत की बात ये है कि उस नक्शें में एक बार फिर काबा केन्द्र में नज़र आ रहा है। इस तरह ये बात लगभग साबित हो जाती है कि ज़मीन जितनी बार भी एक हुई या अलग हुई हमेशा उसका मरकज़ काबा ही रहा। यही बात बगदाद यूनिवर्सिटी के जियोलोजिस्ट डा0सालेह मुहम्मद की रिसर्च में निकलकर सामने आती है। डा0सालेह के अनुसार ज़मीन की प्लेट्‌स जिनके ऊपर समुन्द्र और महाद्वीप मौजूद हैं, लगातार निहायत धीमी रफ्तार से अपनी जगह बदल रही हैं। साथ ही उनकी शक्ल भी बदल रही है। उनमें से कुछ आपस में जुड़कर तो कुछ टूटकर नयी प्लेट्‌स बनाती रहती हैं। कभी कभी इनकी रफ्तार अनियमित भी हो जाती है नतीजे में ज़लज़ले और सूनामी पैदा होते हैं। अब ये साइंसी फैक्ट है कि सभी बनती बिगड़ती प्लेटें एक मरकज़ यानि अरबियन प्लेट के चारों तरफ सुस्त रफ्तारी से घूम रही हैं यानि कि तवाफ कर रही हैं। और इस अरबियन प्लेट का मरकज़ है काबा। 

दुनिया में जितनी पुरानी सभ्यताएं पैदा हुई जिनमें मेसोपोटामिया, सिन्धु घाटी, रोमन व अफ्रीकन सभ्यताएं शामिल हैं उनको शामिल करते हुए अगर एक दायरा खींचा जाये तो उसका मरकज़ मक्का मुकर्रमा और काबा आता है। इस केन्द्र से 8000 किलोमीटर के दायरे में सभी पुरानी सभ्यताएं विकसित हुईं।

अगर काबे को केन्द्र मानते हुए 13000 किलोमीटर का दायरा खींचा जाये तो इसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया व सभी महाद्वीपों के शहर शामिल हो जाते हैं। 
एक सवाल जो साइंसदानों के लिये पहेली बना हुआ है कि इन महाद्वीपों के बनने की शुरूआत कहा से हुई? कुछ लोग कह सकते हैं कि हो सकता है ये महा ज़मीनें हमेशा से मौजूद रही हों। लेकिन ऐसा नहीं है। साइंसदानों ने जो रिसर्च की है उसके अनुसार बहुत पहले ज़मीन एक आग का गोला थी जो सूरज के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था। तो फिर ये आज की धरती की शक्ल में जिसका 71 प्रतिशत हिस्सा समुन्द्र है किस तरह बदल गयी? ज़मीन पर इतना पानी कहां से आया यह साइंसदानों के लिये एक अनसुलझी पहेली है। कुछ साइंसदानों के अनुसार ज़मीन पर से पानी हमेशा से भाप की शक्ल में मौजूद था। जबकि कुछ के अनुसार बर्फीले पुच्छल तारे (Comet) के टकराने से यह पानी ध्राती पर आया। इस पानी ने पूरी पृथ्वी को ठंडा किया और साथ ही तेज़ बारिश के ज़रिये समुन्द्र की शक्ल में हर तरफ फैल गया। उस वक्त खुश्की का कोई वजूद नहीं था और कोई महाद्वीप नहीं बना था। फिर एक प्रोसेस मैण्टिल कन्वेक्शन के ज़रिये समुन्द्र के बीच में ऊंची कोर्स (Cores) का निर्माण हुआ जिनके चारों तरफ धीरे धीरे चट्‌टानों के जमने से महाद्वीप बने। पहली कोर ज़मीन के किस हिस्से में बनी इस बारे में फिलहाल साइंस खामोश है। लेकिन जिस तरह ज़मीन की प्लेट्‌स अरबियन प्लेटस के चारों तरफ मौजूद हैं और दूसरे साइंसी डाटा मिल रहे हैं उससे यही अंदाज़ा लगता है कि पहली कोर वहीं पर बनी जहां काबा मौजूद है। लिहाज़ा साइंसी डाटा इस हदीस के फेवर में हैं कि ‘इसके बाद ज़मीन को खल्क किया और इसी के नीचे से ज़मीन बिछायी।’

जिस तरह ज़मीन की अलग अलग प्लेटस एक दूसरे से जुड़ी हुई मौजूद हें और उनके नीचे ज़मीन का मैटीरियल पिघली और गर्म हालत में है, उससे उन प्लेटस का टिका रहना यकीनन हैरतअंगेज़ है और रसूल (स.) की हदीस के पूरी तरह म्वाफिक है कि ‘मैं और बारह इमाम मेरी औलाद से और तुम ऐ अली ये सब इस ज़मीन के लिये मेखें और पहाड़ हैं ताकि ज़मीन अपने साकिनों के साथ हिले डुले नहीं। जब बारहवां मेरी औलाद से ख़त्म हो जायेगा तो ज़मीन मय अपने साकिनों के बैठ जायेगी और फिर उनको मोहलत न मिलेगी।’ इससे एक बात और जाहिर होती है कि एक वक्त आयेगा जब ज़मीन की प्लेटस अपनी जगह पर टिकी न रहकर धंस जायेगी और महाद्वीपों का वजूद मिट जायेगा।             

और आखिर में एक खास बात और काबे के सिलसिले में। ज़मीन के चुंबकीय क्षेत्र का दक्षिणी सिरा मौजूदा वक्त में में कनाडा की दिशा में है। इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र की equatorial line मक्का यानि कि काबे से होकर गुज़रती है। इस लाइन पर सभी जगह चुम्बकीय क्षेत्र का Vertical Component शून्य होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि काबा चुम्बकीय क्षेत्र के बीचों बीच (विसत में) मौजूद है। यकीनन काबे ने ज़मीन की खिलकत के सिलसिले में इतना अहम किरदार निभाया है कि उसका तवाफ करना बहुत बड़ी इबादत है।
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