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आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन
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क्या कुरआन में गलतियां हैं? (भाग-1)

Written By zeashan haider zaidi on सोमवार, 28 जून 2010 | सोमवार, जून 28, 2010

आजकल ब्लाग जगत में एक सज्जन कुरआन को हर्फे गलत साबित करने पर तुले हुए हैं। क्योंकि उनकी नज़र में इसकी आयतें जगह जगह एक दूसरे को काट रही हैं। उनकी और कुछ और लोगों की नजर में यह काफी ऊंची रिसर्च है। और इसपर उन्हें शाबाशी की जरूरत है।

जबकि हकीकत ये है कि कुरआन नाजिल होने के चौदह सौ सालों के भीतर बहुत से काबिल लोग इसपर उंगली उठा चुके हैं। सैंकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं इसके खिलाफ। लेकिन आखिरी नतीजा यही रहा कि सबने मुंह की खायी। कुरआन के खिलाफ लिखी हर बात का जवाब हमारे इमामों व विद्वानों द्वारा दिया जा चुका है। आज और इसके बाद के कुछ ब्लागों में मैं इसी तरह के एतराज़ात और उनके जवाबात को लिखूंगा।

यह एतराज़ात इमाम हज़रत अली(अ-स-) के सामने एक शख्स ने पेश किये थे और हज़रत अली(अ-स-) ने उनका जवाब दिया था। गुफ्तगू काफी लम्बी है इसलिये इसको दो तीन किस्तों में पेश करूंगा।

पहला एतराज उस शख्स ने इस तरह पेश किया, 
‘‘सूरे आराफ की 51वीं आयत में है, ‘तो हम(अल्लाह) भी आज उनको भूल जायेंगे जिस तरह ये आज के दिन की मुलाकात को भूल गये।’ जबकि सूरे मरियम की 65 वीं आयत में है, ‘और तुम्हारा रब भूलने वाला नहीं।’ तो कभी अल्लाह खबर देता है कि वह भूल जाता है तो कभी आगाह करता है कि वह नहीं भूलता। ये किस तरह मुमकिन है?’’

इसके जवाब में इमाम हजरत अली(अ-स-) ने फरमाया, ‘‘पहली आयत से मतलब ये निकलता है कि जो लोग दुनिया में अल्लाह को भूल गये यानि उसकी बातों पर अमल नहीं किया तो ऐसे लोगों को वह अपने सवाब में से कुछ भी नहीं देगा यानि ऐसे लोगों को कयामत के दिन अल्लाह की मेहरबानियों में से कुछ भी हासिल नहीं होगा।
जबकि दूसरी आयत में भूलने से मतलब गाफिल होने से है। यानि जैसे कि किसी के ज़हन से कोई बात निकल जाये। तो अल्लाह इससे बहुत बुलन्द है।

दूसरा एतराज उस शख्स ने ये पेश किया, ‘‘सूरे नबा की 38 वीं आयत है ‘जिस दिन रूह और फ़रिश्ते सफबस्ता खड़े होंगे उस से कोई बात नहीं कर सकेगा मगर जिस को इन्तिहाई मेहरबान अल्लाह इजाज़त दे और दुरुस्त बात कहे।’ और उसने कहा कि उन को बोलने की इजाज़त दी गयी तो वह कहने लगे, ‘(सूरे अनाम की 23 वीं आयत ) और अल्लाह की कसम जो हमारा रब है हम मुशरिक नहीं हैं।’ फिर सूरे अन्कुबूत की 25 वीं आयत है, ‘फिर कयामत के दिन तुममें से एक दूसरे का इंकार करेगा और एक दूसरे पर लानत करेगा।’ और उसने ये भी कहा कि (सूरे साद 64 वीं आयत) ‘बेशक अहले जहन्नुम का आपस में लड़ना बिल्कुल दुरुस्त है।’ और ये भी फरमाया (सूरे क़ाफ 28 वीं आयत) ‘मेरे सामने झगड़ा न करो और मैंने पहले ही अज़ाब की खबर दे दी थी।’ सूरे यास की 65 वीं आयत में उसने कहा, ‘हम उनके लबों पर मुहर लगा देंगे और उन के हाथ हम से बातें करेंगे और उन के पाँव गवाही देंगे उस के मुताल्लिक जो वह करते रहे हैं।
इस तरह कभी अल्लाह कहता है कि वह कलाम करेंगे तो कभी खबर देता है कि वह बात नहीं करेंगे मगर जिस को रहमान इजाज़त दे और सही बात कहे। और कभी यह कहता है कि मखलूक गुफ्तगू नहीं करेगी और फिर उनकी गुफ्तगू के बारे में कहता है ‘कसम खुदा की वह हमारा रब है हम मुशरिक नहीं हैं।’ और कभी ये बताता है कि वह झगड़ा करते हैं। ये किस तरह मुमकिन है?’’

इसके जवाब में इमाम हजरत अली(अ-स-) ने फरमाया, कि ये सारी बातें कयामत के रोज अलग अलग वक्त में होंगी। कयामत का दिन पचास हज़ार साल लंबा है, जिसमें अल्लाह तमाम लोगों को जमा करेगा जो अलग अलग जगहों में होंगे और एक दूसरे से कलाम करेंगे। और एक दूसरे के लिये भलाई की दुआ करेंगे। ये वो लोग होंगे जो हक़वालों के सरदारों में से होंगे, जिन्होंने दुनिया में अल्लाह की इताअत की होगी। और उन गुनाहगार लोगों पर लानत करेंगे जिन से नफरत व अदावत का इजहार हुआ और जिन्होंने दुनिया में जुल्म व जबर पर एक दूसरे की मदद की। 
गुनाहगार व जालिम एक दूसरे को काफिर कहेंगे और एक दूसरे पर लानत करेंगे। फिर वह एक दूसरी जगह पर जमा होंगे जहाँ वह रोएंगे। अगर ये आवाजें दुनिया वाले सुन लें तो अपने सारे काम धंधे छोड़ दें और उनके दिल फट जायें। इसके बाद वह दूसरी जगह जमा होंगे तो बातें करेंगे और कहेंगे कि ‘कसम खुदा की हमारे रब, हम मुशरिक नहीं थे।’ फिर अल्लाह उन के मुंह पर मुहर लगा देगा और हाथ पैर व खालें बोलने लगेंगी। फिर जिस्म के हिस्से उन के हर गुनाह की गवाही देंगे। फिर उन की जबानों से मुहरों को हटा लिया जायेगा तो वह अपने जिस्म के हिस्सों से कहेंगे तुमने हमारे खिलाफ किस वजह से गवाही दी? तो वह कहेंगे कि हम को उस अल्लाह ने बोलने की ताकत दी जिसने हर शय को कूव्वते फहम अता की।

इस तरह कुरआन की ये आयतें एक दूसरे से अलग नहीं हैं।
(-----जारी है।)

सन्दर्भ : शेख सुद्दूक(र.) की किताब अल तौहीद
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